Measures to Control Plant Diseases

संयंत्र रोगों को नियंत्रित करने के उपाय | Measures to Control Plant Diseases 

पादप रोग का अर्थ (Meaning of Plant Diseases):

पादप रोग (Plant Diseases), विज्ञान शास्त्रियों (Plant Pathologists) को विभिन्न प्रकार के पादप रोगों (Plant Diseases) एवं उनके रोग जनकों (Pathogens) के जीवन चक्र (Life Cycle) आदि का सम्पूर्ण ज्ञान होता है ।

उनका प्रमुख उद्देश्य विभिन्न प्रकार के क्रियाकलापों द्वारा रोग जनकों (Pathogens) के जीवन चक्र (Life Cycle) को पूरा न होने दिया जाये । जिनके द्वारा आर्थिक महत्व के पौधों को रोग ग्रस्त (Diseased) न होने दिया जाए । फसलों (Crops) में विभिन्न प्रकार के रोगों (Diseases), सूक्ष्म जीवों (Micro-Organism) द्वारा फैलते हैं ।

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पौधे में इनके प्रभाव के कारण उपज (Yield) में कमी आ जाती है । अत: यह आवश्यक हो जाता है कि फसलों (Crops) एवं अन्य आर्थिक महत्व के पौधों को रोग जनकों (Pathogens) से संक्रमित (Infected) न होने दिया जाए तथा रोगों के निदान के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए जावें जिससे पैदावार में वृद्धि हो सकती है ।

पौधों में कवकों (Fungi) द्वारा रोग जनकों (Pathogens) से लगभग 500 प्रकार के रोग पादपों में होते हैं । इसके अतिरिक्त 250 रोग (Diseases), विषाणु (Virus), जीवाणु (Bacteria), माइकोप्लाज्मा (Mycoplasma) जनित होते हैं । रोग जनक (Pathogens) को नष्ट करके विभिन्न प्रकार के रोगों पर नियन्त्रण (Control) हो सकता है ।

आधुनिक वैज्ञानिक विचारधार के अनुसार- पौधे एवं रोगजनक के बीच हुई परस्पर क्रियाओं (Interactions) को तेग कहते हैं । रोग पौधे के किसी अंग की कोशिकाओं और रोग जनक अथवा उससे उत्पन्न एन्जाइमों (Toxins) एवं वृद्धि नियंत्रकों (Growth Regularities) के मध्य में जैव-रासायनिक अभिक्रियाएं (Bio-Chemical Reactions) होती है जिससे पौधे प्रभावित होते हैं और उन्हें खत्म कर देते हैं ।

ऐतिहासिक विवरण (Historical Account of Plant Diseases):

पादप रोगों (Plant Diseases) का इतिहास (History) बहुत प्राचीन है । बाईबिल (Bible) में ब्लाइट (Blight), मिल्डयू (Mildew) तथा रस्ट (Rust) के बारे में अनेक लेख मिले है ।

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इसके अतिरिक्त ग्रीक्स (Greeks) तथा रोमन्स (Romans) ने भी प्राचीन समय में अनेक उदाहरण प्रस्तुत किये हैं, किन्तु इनमें से किसी ने भी रोगों (Diseases) के कारणों (Factors) का उल्लेख नहीं किया ।

ईश्वरों (Gods), रोबीग्यूज (Robigues) तथा रोबीगो (Robigo) में विश्वास करते थे और जो खाद्यान्नों में रस्ट (Cereal Rust) हो जाता था, उसे ईश्वर की देन (Evil) मानकर प्रतिवर्ष “रोबीगेलिया” (Robigalia) नामक उत्सव मनाते थे ताकि दोनों ईश्वर प्रसन्न हो जायें ।

18वीं शताब्दी के दौरान राई का अर्गट रोग (Ergot of Rye) महामारी के रूप में उत्पन्न होता रहता था जिसके कारण यूरोप में हजारों जानें चली जाती थी । आज भी उन मनुष्यों के कष्ट की दारुण गाथायें भय के साथ पढ़ी जाती हैं ।

पादप रोगों का वर्गीकरण (Classification of Plant Diseases):

पादप रोगों (Plant Diseases) का वर्गीकरण निम्नलिखित आधारों पर किया गया है:

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(1) रोग जनक (Pathogen) की प्रकृति (Nature) के आधार पर ।

(2) रोग जनकों (Pathogen) द्वारा उत्पन्न रोग लक्षणों (Symptoms) के आधार पर ।

(3) रोग (Disease) की प्रचलित डिग्री (Degree of Prevalence) के आधार पर ।

(4) रोग जनकों (Pathogens) के प्राप्ति स्थान (Occurrence), चिरस्थायीपन (Perpetuation) तथा संचरण (Transmission) विधियों के आधार पर प्रकृति में विभिन्न प्रकार के रोग जनक (Pathogens) पाये जाते हैं । जिनका वर्गीकरण जीवित (Animate), विषाणु (Viral) तथा अजीवित (Inanimate) रूपों में किया गया है ।

क्योंकि रोगों के लक्षण (Symptoms), पोषक (Host) तथा परजीवी (Parasite) पारस्परिक सम्बन्धों (Interaction) के कारण उत्पन्न होते है । प्रायः रोग जनक (Pathogen) की वृद्धि (Growth) पोषक (Host) की सतह पर दिखायी देती है ।

जैसे पाउडरी मिल्डयू (Powdery Mildews) नामक रोग में कपास (Cotton) की भांति सफेद (White) संरचना, पोषक (Host) के ऊपर पायी जाती है । अन्य रोगों में पोषकों (Host) का रूप विकृत (Deformed) हो जाता है । कुछ अन्य रोगों में सम्पूर्ण पौधा (Host) पोषक तथा परजीवी (Parasite) के आन्तरिक पारस्परिक सम्बन्धों के कारण नीचे की ओर झुक (Droop) कर समाप्त हो जाता है ।

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